

शनि उपासना के मंत्र
शनि की उपासना के लिए निम्न में से किसी एक मंत्र अथवा सभी का श्रद्धानुसार नियमित एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिए।
जप का समय संध्याकाल तथा कुल जप संख्या 23000 होनी चाहिए।
न्याय के देवता भगवान शनि अनेक कारणों से विलक्षण देवता माने जाते हैं। शनि की गति मंद यानी धीमी मानी जाती है, तो दृष्टि वक्र यानी टेढ़ी। उनके न्याय का हिसाब-किताब भी सीधा होता है यानी अच्छे कर्मों पर कृपा व बुरे कर्मों पर दण्ड। यही कारण है कि शनिदेव की शुभ दृष्टि भाग्य बनाने वाली मानी गई है, तो उनकी नाराजगी कहर बरपाने वाली भी। शनि की चाल बदलने, शनि महादशा, साढ़ेसाती या ढैय्या में शनि की कृपा से सौभाग्य, सफलता व सुख की कामना पूरी करने के लिए शास्त्रों में शनि के सरल नाम मंत्रों का स्मरण मंगलकारी माना गया है। खासतौर पर इन शनि मंत्रों का जप धन, रोजगार व समृद्धि की बाधा दूर करवैभवशाली व खुशहाल बनाने वाले होते हैं। जानें शनि भक्ति के लिए ये आसान मंत्र व पूजा के सरल उपाय -
काले वस्त्र, उड़द की दाल, फूल व तेल से बनी मिठाई या पकवान अर्पित कर समृद्धि की कामना से नीचे लिखे सरल शनि मंत्रों का स्मरण करें -
ॐ धनदाय नम:
ॐ मन्दाय नम:
ॐ मन्दचेष्टाय नम:
ॐ क्रूराय नम:
ॐ भानुपुत्राय नम:
- पूजा व मंत्र स्मरण के बाद शनि की धूप व तेल दीप से आरती भी करें। दोषों के लिए क्षमा प्रार्थना करें व प्रसाद ग्रहण करें।
असल में, शनि के स्वभाव का दूसरा पहलू यह भी है कि शनि के शुभ प्रभाव से रंक भी राजा बन सकता है।
शनि को तकदीर बदलने वाला भी माना गया है। इसलिए अगर सुख के दिनों में भी शनि भक्ति की जाए तो उसके शुभ
फल से सुख-समृद्धि बनी रहती है। शास्त्रों में शनि की प्रसन्नता के लिए ऐसा ही एक मंत्र बताया गया है।
इसके प्रभाव से घर-परिवार में हमेशा खुशहाली बनी रहती है। वहीं जीवन का कठिन या तंगहाली का दौर भी आसानी से कट जाता है।
शनिवार या हर रोज इस मंत्र जप के पहले शनिदेव की पूजा करें। गंध, अक्षत, फूल, तिल का तेल चढ़ाएं। तेल से बने पकवान का भोग लगाएं।पूजा के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करें या शनिदेव को तेल चढ़ाते हुए इस मंत्र को बोलें -
ऊँ नमो भगवते शनिश्चराय सूर्य पुत्राय नम:
मंत्र ध्यान व पूजा के बाद शनिदेव की आरती कर नीचे लिखे
मंत्र से जाने-अनजाने हुए बुरे कर्म व विचार के लिये
क्षमा मांग आने वाले वक्त को सुखद व सफल बनाने की कामना करें -
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर।।
गतं पापं गतं दु:खं गतं दारिद्रय मेव च।
आगता: सुख-संपत्ति पुण्योऽहं तव दर्शनात्।1