

इस पवित्र स्थान का निर्माण आज से 150 वर्ष पूर्व एक कुआं व धर्मशाला के रूप में कराया गया था | धर्मशाला के साथ मन्दिर में भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती थी एवं भगवान की अदभुत शक्ति से यहां लोगो की मनोकामना पूर्ण होती थी शिव की महिमा का वर्णन प्रसिध्द महाकवि पण्डित लख्मिचन्द्र जी ने अपनी रचनाओ में भी किया है | समय के साथ-साथ नाले में आये तैज़ पानी के बहाव से धर्मशाला का ज्यादातर हिस्सा बह गया और यह पवित्र स्थान लोगों की नजरो से ओझल हो गया जिस के अवशेष आज भी नाले के पुल के नीचे कुऐ के बाहरी दीवार के रूप में दिखाई देते हैं | लेकिन वर्षो बाद जब इस नाले पर पुल के निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ तो उसके निर्माण में अनेक प्राकृतिक व भौगोलिक बाधाऐ आने लगी | कई नामी कम्पनियाँ भी इस निर्माण कार्य को पूर्ण नही कर सकी इस कड़ी में जब कम्पनी के मजदूरो ने यहां डेरा डाल रखा था तो एक राजमिस्त्री को स्वप्न में भगवान शिव के दर्शन प्राप्त हुऐ और उसे अनुभूत हुई की यहां भगवान शिव की शक्ति विद्यमान हैं उसने अगली सुबह ही इसकी चर्चा अपनी कम्पनी के मालिक व साथियों के साथ इस शिवलिंग की स्थापना की और भगवान की अद्बितीय शक्ति से इस पुल का निर्माण निर्बाध्य रूप से संपन्न हुआ निर्माण कार्य होने पर मजदूरों के यहां से चले जाने पर यह शिवलिंग वीरान रहा लेकिन एक अदभुत चमत्कार के रूप में पिछ्लें कुछ वर्षो से यहां भक्तों द्बारा की जां रही मनोकामना पूर्ति की चर्चाओ के बाद इस पवित्र स्थान की प्रसिद्भि की सूचना भक्तजनो द्बारा सोहटी धाम के सतगुरुश्री श्री सूर्यनाथ जी को दी गई तो उन्होने स्वय इस प्राचीन स्थान पर पधारने का निर्णय किया और सतगुरु सूर्यनाथ महाराज जी ने जैसे ही अपने पवित्र चरण इस भूमि पर रखें उन्हें भगवान शिव की अदभुत शक्ति की अनुभूति हुई और उन्हीं के आशीर्वाद स्वरुप इस मन्दिर का नव निर्माण व घुणे की स्थापना का कार्य सम्पन्न हुआ तत्पश्चात सतगुरु सूर्यनाथ जी के शिष्य महंत श्री संदीप जी महाराज द्बारा इस पवित्र शिवलिंग को श्री सूखा महादेव के नाम से पूजा गया | जिसके फलस्वरुप यहां आने वाले मानसिक व शारीरिक व्याधीयों से परेशान लोगों की मनोकामना पूर्ति का कार्य शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही पूर्ण होने लगा |
कुछ समय उपरांत मन्दिर संचालन समिति द्बारा यहां भागवान शिव की भव्य मूर्ति स्थापित करने का कार्य शुरू किया गया एवं मूर्ति स्थापना हेतु चबूतरे का निर्माण पूर्ण हो गया लेकिन किन्ही अद्रश्य देवीय: कारणो से यहां शिव मुरति की स्थापना तब नहीं हो सकी एक भक्त द्बारा मन्दिर प्रबंधक को यह जानकारी दी गई कि उसे यह यहसास हुआ हैं कि यहां भगवान के शिष्य महान देव शनिदेव का अवतरण हुआ हैं | अत: यह स्थान शनिदेव को अर्पित किया जाए और फिर उसी जगह शनिदेव जी की भव्य एवं विशाल मूर्ति कि स्थापना हुई और उसी दिन से महान देव शनिदेव जी यहां आने वाले भक्तों को साक्षात अपनी उपस्थिति का अहसास करा रहे है | एवं भक्तों के समस्त कष्टो का निवारण अपनी कृपा द्रष्टि व आशीर्वाद से करते है |